पंजाब में वेटरनरी अफसरों ने सरकार को दिया अल्टीमेटम

पंजाब में वेटरनरी अफसरों ने सरकार को दिया अल्टीमेटम

पंजाब में वेटरनरी अफसरों ने सरकार को दिया अल्टीमेटम

पंजाब सरकार द्वारा भले ही कर्मचारियों की समस्याओं को हल करने के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इससे उलट है। पशुपालन विभाग में कार्यरत वेटरनरी अफसरों ने सरकार से तंग आकर एक बार फिर आंदोलन का ऐलान कर दिया है। उन्होंने सरकार को 10 दिनों का अल्टीमेटम जारी करते हुए चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे मजबूर होकर सड़कों पर उतरेंगे।

वेटरनरी अफसरों की सबसे प्रमुख मांग है कि उन्हें मेडिकल अफसरों के समान वेतन (पे-पैरिटी) दिया जाए। पहले यह व्यवस्था लागू थी, लेकिन छठे वेतन आयोग के बहाने पिछली सरकार ने वेटरनरी अधिकारियों की एंट्री स्केल को घटा दिया और मेडिकल अफसरों के साथ चल रही 40 साल पुरानी वेतन समानता को खत्म कर दिया गया। इससे न केवल आर्थिक नुकसान हुआ, बल्कि अफसरों के मनोबल पर भी नकारात्मक असर पड़ा।

संघर्ष का यह फैसला “ज्वाइंट एक्शन फॉर पे पैरिटी” की राज्य स्तरीय कमेटी द्वारा एक वीडियो कांफ्रेंस मीटिंग में लिया गया। इसमें तय किया गया कि अफसर केंद्र सरकार की योजना ‘सुरभि सरणखला’ का बहिष्कार करेंगे। इस योजना के तहत अधिक दूध देने वाली नस्लों की पहचान कर उन्हें बढ़ावा देना था, लेकिन वेटरनरी अफसरों ने इससे किनारा कर लिया है, जिससे सरकार को बड़ा झटका लग सकता है।

संघर्ष कमेटी के कन्वीनर डॉ. गुरचरण सिंह ने बताया कि मेडिकल अफसरों के समान वेतन का अधिकार वेटरनरी अफसरों को माननीय पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले के आधार पर दिया गया था। इसके बावजूद सरकार इसे बहाल करने में असफल रही है। उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार को बार-बार ज्ञापन देने और कई दौर की बैठकों के बावजूद कोई ठोस नतीजा नहीं निकला।

पूर्व पशुपालन मंत्री कुलदीप सिंह ढालीवाल, लालजीत सिंह भुल्लर और वर्तमान मंत्री गुरमीत सिंह खुड्डियां को भी कई बार मांग-पत्र दिए गए हैं। विभागीय मंत्रियों के साथ कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं। यहां तक कि सरकार की कैबिनेट सब-कमेटी के साथ भी दो बार बातचीत हुई है, लेकिन इन सबका नतीजा केवल वादों तक ही सीमित रहा है। किसी भी स्तर पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया।

वेटरनरी अफसरों ने यह भी आरोप लगाया है कि सरकार में बैठे उच्च अधिकारी फाइलों की खानापूर्ति के लिए कर्मचारियों पर दबाव बना रहे हैं। आंकड़ों की आपूर्ति के नाम पर स्टाफ को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है। जो कर्मचारी विरोध करते हैं, उन्हें चार्जशीट या निलंबन जैसे उपायों से डराया-धमकाया जा रहा है, जो अत्यंत निंदनीय है।

संघर्ष कमेटी के को-कन्वीनर डॉ. पुनीत मल्होत्रा, डॉ. अब्दुल मजीद और प्रवक्ता डॉ. गुरिंदर सिंह वालिया ने सरकार को चेतावनी दी है कि अगर 13 जुलाई तक पे-पैरिटी की मांग पूरी नहीं हुई, तो राज्यभर के सभी वेटरनरी डॉक्टर एकजुट होकर सड़कों पर उतरेंगे। यह आंदोलन सरकार के लिए गंभीर प्रशासनिक और राजनीतिक चुनौती बन सकता है।

यह आंदोलन केवल वेतन की मांग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अफसरों की गरिमा, आत्मसम्मान और न्याय की लड़ाई बन गया है। बार-बार वादाखिलाफी और निर्णय टालने की नीति से वेटरनरी अफसरों में भारी असंतोष है। अफसरों का कहना है कि अगर अब भी उनकी मांगों को नजरअंदाज किया गया, तो वे आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार हैं।

संघर्ष समिति का मानना है कि सरकार केवल बयानबाज़ी तक सीमित है, जबकि अफसरों की ज़मीनी समस्याओं की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। पशुपालन विभाग, जो राज्य के आर्थिक ढांचे में अहम भूमिका निभाता है, उसके अधिकारियों के साथ हो रहे इस व्यवहार से पूरे सिस्टम पर सवाल उठ रहे हैं। यह रवैया केवल विभाग के कर्मचारियों ही नहीं, बल्कि आम जनता को भी प्रभावित करेगा।

जैसे-जैसे 13 जुलाई की तारीख नज़दीक आ रही है, सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है। अगर सरकार ने मांगें पूरी नहीं कीं, तो यह आंदोलन न केवल पशुपालन विभाग की कार्यप्रणाली को बाधित करेगा, बल्कि सरकार की नीतियों और कर्मचारियों के साथ उसके व्यवहार पर भी गंभीर सवाल खड़े करेगा। अब देखना यह है कि सरकार अफसरों की मांगें मानकर स्थिति को संभालती है या फिर एक बड़े आंदोलन को न्योता देती है।