शेल्बी अस्पताल ने जानलेवा कैंसर से एक ज़िंदगी बचाई

Shalby Hospital ne jaanleva cancer se ek zindagi bachayi

शेल्बी अस्पताल ने जानलेवा कैंसर से एक ज़िंदगी बचाई


सौभाग्य से, जिस मरीज की बात हो रही है, उसकी सर्जरी पूरी तरह सफल रही और किसी प्रकार की जटिलता नहीं हुई – जो इस बात का माण है कि ऑपरेशन करने वाली टीम अत्यंत कुशल और अनुभवी थी। डॉक्टरों ने बताया कि इस तरह की बीमारी के लक्षण शुरुआती दौर में इतने साधारण होते हैं कि मरीज या परिवार उन्हें सामान्य कमजोरी समझकर नज़रअंदाज़ कर देता है। इन लक्षणों में वजन घटना, भूख न लगना, मुंह का स्वाद बिगड़ जाना, कुछ भी खाने में परेशानी होना, आंखों और त्वचा का पीला पड़ना (जॉन्डिस), तेज खुजली, हल्का बुखार, नींद की कमी, और मल का रंग सफेद होना शामिल हैं। ऐसे संकेत अगर लंबे समय तक बने रहें, तो इन्हें नजरअंदाज़ करना भारी पड़ सकता है।

डॉक्टरों ने स्पष्ट किया कि पैंक्रियास में ट्यूमर की पुष्टि के बाद ही सर्जरी की जाती है और अगर समय पर इलाज न किया जाए, तो यह ट्यूमर शरीर के अन्य हिस्सों में फैल सकता है। सर्जरी के बाद इस मरीज की हालत कुछ समय के लिए चिंताजनक हो गई थी। यूरिन आना पूरी तरह बंद हो गया था और शरीर में एसिड की मात्रा बढ़ने लगी थी, जिससे किडनी पर असर पड़ा। लेकिन डॉक्टरों ने तत्काल उपचार शुरू किया, जिससे 24 से 48 घंटों में मरीज की हालत स्थिर हो गई और किडनी की कार्यक्षमता दोबारा सामान्य हो गई।

इस केस में एक और बड़ी समस्या का ज़िक्र किया गया – सबस्टैंडर्ड या घटिया दवाओं की। ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों से आने वाले मरीजों को अक्सर ऐसी दवाएं मिलती हैं जो इलाज को प्रभावित कर सकती हैं। इस अस्पताल की विशेषता यह है कि ICU में केवल उच्च गुणवत्ता की IV दवाएं दी जाती हैं, ताकि मरीज को सर्वोत्तम और सुरक्षित इलाज मिल सके। इलाज के इस उच्च स्तर को बनाए रखने के लिए अस्पताल कोई समझौता नहीं करता।

सर्जरी के बाद मरीज को आमतौर पर एक से दो महीने के भीतर कीमोथेरेपी दी जाती है, जो लगभग तीन से छह महीने तक चलती है। कीमोथेरेपी पूरे शरीर को प्रभावित करती है और इसके दौरान कमजोरी, मतली और थकान जैसी समस्याएं सामान्य होती हैं, लेकिन ट्यूमर को दोबारा पनपने से रोकने के लिए यह उपचार जरूरी होता है। डॉक्टरों ने यह भी बताया कि पैंक्रियास ट्यूमर एक बेहद दुर्लभ बीमारी है – प्रति 400 में से केवल एक व्यक्ति को ही जीवन में यह होता है। इसी वजह से इसके लिए नियमित स्क्रीनिंग नहीं की जाती।

हालांकि, डॉक्टरों की सलाह है कि अगर किसी को ऊपर बताए गए लक्षण एक महीने तक लगातार महसूस हों, तो उसे नजरअंदाज करने के बजाय किसी विशेषज्ञ डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए। समय पर निदान और इलाज ही इस जानलेवा बीमारी से बचने का एकमात्र तरीका है। इलाज के खर्च की बात करें, तो यह अस्पताल मरीजों को आर्थिक राहत भी प्रदान करता है। यह संस्थान CGHS, ECHS और अन्य सरकारी योजनाओं के अंतर्गत कैशलेस इलाज की सुविधा उपलब्ध कराता है, जिससे आम आदमी के लिए भी उच्च गुणवत्ता का इलाज सुलभ बन सके।

यह अस्पताल प्रसिद्ध सर्जन डॉ. विक्रम शाह द्वारा स्थापित किया गया है, जो मरीज-केंद्रित दृष्टिकोण को प्राथमिकता देते हैं। अस्पताल की पूरी टीम बेहद समर्पित और अनुशासित है, जो हर मरीज को व्यक्तिगत देखभाल देती है। मरीज के स्वास्थ्य में सुधार तब तक लगातार निगरानी की जाती है जब तक वह पूर्ण रूप से स्वस्थ न हो जाए। यहां इलाज की गुणवत्ता पर कभी समझौता नहीं किया जाता, और यही वजह है कि यह अस्पताल एक विश्वसनीय नाम बन चुका है।

यह पूरा केस इस बात का प्रमाण है कि समय पर निदान, कुशल डॉक्टरों की टीम, उच्च गुणवत्ता की दवाएं, और बेहतरीन पोस्ट-ऑपरेटिव केयर – इन सबका संतुलित संयोजन किसी भी गंभीर बीमारी से मरीज को बाहर निकाल सकता है। मरीज की जान बचना केवल विज्ञान और तकनीक की उपलब्धि नहीं, बल्कि एक समर्पित टीम की मेहनत और विशेषज्ञता का परिणाम है। इस मामले से न केवल स्वास्थ्य सेवाओं की शक्ति स्पष्ट होती है, बल्कि यह भी सिखने को मिलता है कि किसी भी असामान्य लक्षण को कभी हल्के में नहीं लेना चाहिए।