फिल्म ‘घिच पिच’ एक भावुक यात्रा है, जो 1990 के दशक के चंडीगढ़ की गलियों से शुरू होकर हर दर्शक के दिल तक पहुँचती है। यह फिल्म तीन किशोरों की जिंदगी के उन पलों को उजागर करती है, जहाँ दोस्ती, विद्रोह, और पिता-पुत्र के जटिल रिश्तों की परतें धीरे-धीरे खुलती हैं।
चंडीगढ़ का वह दौर जब इंटरनेट और मोबाइल जीवन का हिस्सा नहीं थे, स्कूल की घंटियां, साइकिल की रेस, और दिल की बातें डायरी में लिखी जाती थीं—फिल्म इन्हीं यादों की गहराई में उतरती है। हर दृश्य में नॉस्टेल्जिया बसता है, और हर संवाद किसी भूली-बिसरी स्मृति को छू जाता है।
घिच पिच के निर्देशक अंकुर सिंघला पेशे से वकील और टेक उद्यमी रहे हैं। उन्होंने अपनी सीक्वोइया समर्थित कंपनी को अमेजन को बेचने के बाद फिल्म निर्माण की दुनिया में कदम रखा। यह फिल्म उनके अपने अनुभवों, दोस्तों और पिताओं के साथ बिताए उन पलों पर आधारित है जो आज भी उनके साथ हैं।
अंकुर सिंघला ने लॉकडाउन के दौरान अपने अंदर की आवाज़ को सुना और अपनी यादों को परदे पर उतारने का निर्णय लिया। ‘घिच पिच’ न केवल उनकी पहली फिल्म है, बल्कि उनके बचपन, दोस्ती और अधूरे संवादों का सिनेमाई दस्तावेज़ भी है। यह फिल्म उनके अंदर के उस कलाकार की आवाज़ है जो बरसों से कहानियाँ सुनाने को तैयार बैठा था।
फिल्म में किशोर पात्रों की जद्दोजहद को बहुत ही संवेदनशीलता से पेश किया गया है। उनके मन के द्वंद्व, उनके विद्रोही तेवर और पिता के साथ उनके खट्टे-मीठे रिश्ते, सब कुछ बड़े ही सजीव ढंग से सामने आता है। यह फिल्म ना सिर्फ युवाओं को, बल्कि हर पिता को भी खुद से जोड़ने पर मजबूर करती है।
घिच पिच चंडीगढ़ के माहौल और संस्कृति को उसकी पूरी प्रामाणिकता के साथ चित्रित करती है। पुराने शहर की गलियाँ, स्कूल यूनिफॉर्म, ट्यूशन की भागदौड़ और दोस्ती की वो बेफिक्री—फिल्म हर दृश्य में दर्शकों को उस दौर में ले जाती है, जहाँ भावनाएं साफ और रिश्ते गहरे थे।
इस फिल्म की सिनेमैटोग्राफी, बैकग्राउंड म्यूजिक और अभिनय, तीनों मिलकर इसे एक अनुभव में बदल देते हैं। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं बल्कि एक एहसास है, जिसे देखकर हर कोई अपनी किशोरावस्था में लौटने को मजबूर हो जाता है। अभिनय में किसी भी तरह की बनावट नहीं, सिर्फ सच्चाई है।
घिच पिच उन फिल्मों में से है जो बगैर किसी बड़े स्टारकास्ट के भी दर्शकों का दिल जीतने की ताकत रखती है। यह फिल्म बॉलीवुड के ढांचे से बाहर निकलकर एक नई तरह की स्वतंत्र सिनेमा की शुरुआत करती है, जो कहानी को केंद्र में रखती है।
बर्साती फिल्म्स के बैनर तले बनी इस फिल्म का उद्देश्य है – सादगी और सच्चाई से कहानियाँ कहना। अंकुर सिंघला और उनकी टीम का यह प्रयास आज के दौर में बेहद जरूरी है, जब अधिकतर फिल्में शोर और ग्लैमर पर निर्भर हैं। घिच पिच दिल की गहराइयों तक उतरने वाली फिल्म है।
एक अगस्त 2025 को यह फिल्म पूरे भारत में सिनेमा घरों में रिलीज़ हो रही है। अगर आप भी किसी पिता से अधूरी बात करना चाहते हैं या अपने बचपन को फिर से जीना चाहते हैं, तो ‘घिच पिच’ ज़रूर देखिए। यह फिल्म आपके भीतर कुछ ऐसा जगा देगी जो आपने शायद भुला दिया हो।
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