पंजाब सरकार एक बार फिर शिक्षा के संवैधानिक अधिकार को लेकर कठघरे में खड़ी हो गई है। गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में मुफ्त दाखिला दिलाने के आदेश हाईकोर्ट पहले ही दे चुका है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।
आरटीई एक्ट 2009 के तहत देश की हर राज्य सरकार गरीब बच्चों को शिक्षा का अधिकार देने के लिए बाध्य है। इसके बावजूद पंजाब में यह कानून आज तक प्रभावी रूप से लागू नहीं किया गया है।
चंडीगढ़ प्रेस क्लब में हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ओंकार नाथ और जगमोहन सिंह राजू ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने फरवरी में ही आदेश दे दिए थे, लेकिन न तो शिक्षा विभाग ने एसओपी बनाई और न ही निजी स्कूलों ने दाखिले दिए।
उन्होंने बताया कि लाखों बच्चे अब भी स्कूलों के बाहर हैं क्योंकि या तो उनके आवेदन खारिज कर दिए गए या उन्हें दाखिला देने से ही मना कर दिया गया। शिक्षा विभाग की निष्क्रियता के कारण जिला शिक्षा अधिकारी भी कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।
यह समस्या केवल कानूनी नहीं, नैतिक भी है। शिक्षा का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21ए में सुनिश्चित किया गया है और इसकी अवहेलना सीधे तौर पर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।
प्रेस वार्ता में बताया गया कि पंजाब सरकार ने मार्च में भी एक आदेश जारी किया था लेकिन उसका पालन नहीं हुआ। न तो दस्तावेजों की स्पष्टता है, न ही रिइम्बर्समेंट की प्रक्रिया तय हुई है।
निजी स्कूल अपने फायदे के लिए गरीब बच्चों के दाखिले को टाल रहे हैं। वे वित्तीय भार का हवाला देकर सामाजिक उत्तरदायित्व से भाग रहे हैं। सरकार की चुप्पी ने उन्हें और अधिक मनमानी करने की छूट दे दी है।
ओंकार नाथ और राजू ने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने सात दिनों में कार्रवाई नहीं की, तो पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में अवमानना याचिकाएं दाखिल की जाएंगी और राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग का भी दरवाजा खटखटाया जाएगा।
उन्होंने मांग की कि जिला स्तर पर अधिकारियों को कार्रवाई की पूरी ताकत दी जाए, निजी स्कूलों की मान्यता रद्द की जाए और शिकायतों पर तत्काल सुनवाई की व्यवस्था की जाए।
अंत में उन्होंने कहा कि यह केवल कानून की लड़ाई नहीं है, यह उन बच्चों की जिंदगी की लड़ाई है, जिन्हें शिक्षा से दूर रखा जा रहा है। जब तक हर बच्चा अपने अधिकार से वंचित है, तब तक उनकी मुहिम जारी रहेगी।
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