पंजाब के पशुपालन विभाग के वेटनरी डॉक्टरों ने आज शहीद-ए-आजम भगत सिंह के जन्मस्थान, खटकर कलां में एक ऐतिहासिक राज्य-स्तरीय धरना आयोजित किया और रोष मार्च निकाला। राज्य के लगभग हर ज़िले से वेटनरी अफसर, वरिष्ठ वेटनरी अफसर, सहायक और डिप्टी डायरेक्टर पदों पर तैनात डॉक्टर भारी संख्या में धरना स्थल पर पहुंचे।
धरना “जॉइंट एक्शन कमेटी ऑफ वेट्स फॉर पे-पैरिटी” के नेतृत्व में हुआ। समिति के नेताओं ने बताया कि उनकी मुख्य मांग मेडिकल अफसरों के साथ 42 वर्षों से चल रही पे-पैरिटी की बहाली और 4, 9, 14 सालों के डी.ए.सी.पी. (Dynamic Assured Career Progression) को फिर से लागू करना है।
समिति के संयोजक डॉ. गुरचरण सिंह ने भाषण में कहा कि 1978 से 2020 तक वेटनरी और मेडिकल अफसरों का वेतन हमेशा समान रहा, लेकिन जनवरी 2021 में पिछली कांग्रेस सरकार ने एकतरफा निर्णय लेकर उनकी मूल वेतन ₹56,100 से घटाकर ₹47,600 कर दी। यह न केवल वेतन कटौती थी, बल्कि पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन भी था।
उन्होंने कहा कि इस अन्यायपूर्ण फैसले ने वेटनरी समुदाय के मनोबल को गहरी चोट पहुंचाई है क्योंकि समाज में उनका योगदान कभी भी मेडिकल समुदाय से कम नहीं रहा है। उन्होंने सवाल उठाया कि मौजूदा आम आदमी पार्टी की सरकार तीन वर्षों से इस मुद्दे का समाधान क्यों नहीं कर रही।
धरने में शामिल डॉक्टरों ने कहा कि इस आंदोलन के ज़रिए सरकार को भगत सिंह की सोच याद दिलाई गई है और यह स्पष्ट संदेश दिया गया है कि वेटनरी डॉक्टर अपनी मांगें माने बिना अब चैन से बैठने वाले नहीं हैं। सरकार की ढिलाई और टालमटोल की रणनीति अब बेमानी हो चुकी है और मुख्यमंत्री को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए।
संयुक्त संयोजक डॉ. पुनीत मल्होत्रा और डॉ. अब्दुल मजीद ने कहा कि चंडीगढ़, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, हरियाणा, केंद्र सरकार, भारतीय सेना और बीएसएफ सहित कई संस्थानों में वेटनरी अफसरों को मेडिकल अफसरों के बराबर वेतन और सुविधाएं दी जा रही हैं, जबकि पंजाब में 2021 से यह असमानता जारी है।
जॉइंट एक्शन कमेटी के मीडिया सलाहकार डॉ. गुरिंदर सिंह वालिया ने कहा कि यह शर्म की बात है कि पढ़े-लिखे वेटनरी डॉक्टर, जो मूक पशुओं का इलाज करके उन्हें रोगमुक्त करते हैं, उनकी जायज़ मांगों को अनदेखा कर सरकार ने उन्हें सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया है।
समिति के कोऑर्डिनेटर डॉ. तेजिंदर सिंह ने कहा कि वेटनरी अधिकारी केवल दफ्तरों में कागज़ी काम नहीं करते, बल्कि गांव-गांव जाकर पशुओं का इलाज, टीकाकरण, बीमारियों का नियंत्रण और दुग्ध उत्पादन में सुधार का कार्य करते हैं, जो सीधे तौर पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़ा है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने तत्काल कार्रवाई नहीं की तो आंदोलन तेज़ होगा और इसके परिणामस्वरूप पशुधन की सेहत और किसानों की आमदनी पर पड़ने वाले असर के लिए सरकार खुद जिम्मेदार होगी।
धरना स्थल पर सरकार विरोधी नारे, बैनर और पोस्टर लहराए गए। कई डॉक्टरों ने अपने भाषणों में पिछली और मौजूदा सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए। सेवानिवृत्त वेटनरी डॉक्टरों ने भी वहां पहुंचकर युवाओं को हौसला दिया।
अंत में, एक संयुक्त मांग-पत्र सरकार को भेजा गया और मांगों को जल्द पूरा करने की अपील की गई। आंदोलनकारियों ने स्पष्ट कर दिया कि यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक पे-पैरिटी और डी.ए.सी.पी. बहाल नहीं होती।
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