कार्यालय महालेखाकार (लेखा व हकदारी) पंजाब एवं यू.टी., चंडीगढ़ में 21 अगस्त 2025 को आयोजित हिंदी कार्यशाला का उद्देश्य कार्यालयीन कार्य में हिंदी भाषा के प्रभावी और सरल प्रयोग को प्रोत्साहित करना था। इस कार्यशाला में न केवल टिप्पण-आलेखन और पत्राचार की शैली पर ध्यान दिया गया, बल्कि यह भी समझाया गया कि किस प्रकार तकनीक का उपयोग कर हिंदी को और अधिक सुलभ बनाया जा सकता है। कार्यालयीन वातावरण में मातृभाषा के प्रयोग से कार्य की पारदर्शिता और सहजता बढ़ती है, इसी को ध्यान में रखते हुए इस आयोजन की योजना बनाई गई।
इस कार्यशाला की खासियत यह रही कि इसमें हिंदी के विभिन्न पहलुओं को गहराई से समझाने का प्रयास किया गया। प्रतिभागियों को बताया गया कि किस प्रकार आधिकारिक लेखन में भाषा की स्पष्टता और सरलता बनाए रखना आवश्यक है। हिंदी के प्रयोग से जहां कर्मचारियों को आत्मीयता का अनुभव होता है, वहीं कार्य निष्पादन में भी गति आती है। विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से हिंदी के बढ़ते उपयोग ने यह सिद्ध कर दिया है कि आधुनिक युग में भी भारतीय भाषाओं की उपयोगिता उतनी ही महत्वपूर्ण है।
कार्यशाला का आयोजन राजभाषा कार्यान्वयन समिति की तिमाही बैठक के संकल्पों के अनुरूप किया गया। महालेखाकार तृप्ति गुप्ता ने पहले ही स्पष्ट किया था कि हिंदी के प्रगामी प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए केवल प्रोत्साहन ही नहीं, बल्कि तकनीकी साधनों का सहयोग भी आवश्यक है। इसी दृष्टि से यह प्रशिक्षण सत्र आयोजित किया गया, जिससे कर्मचारियों को तकनीक और भाषा के मेल का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त हो सके।
अतिथि वक्ता के रूप में आमंत्रित किए गए अरविंद कुमार, सहायक निदेशक, राजभाषा विभाग, केन्द्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान ने प्रतिभागियों को हिंदी में कार्य करने के तकनीकी उपाय बताए। उन्होंने विस्तार से समझाया कि किस प्रकार “कंठस्थ 2.0” और “हिंदी शब्द सिंधु” जैसे आधुनिक टूल्स का प्रयोग कर हिंदी टंकण, अनुवाद और लेखन को सहज बनाया जा सकता है। उनकी प्रस्तुति ने न केवल कर्मचारियों का उत्साह बढ़ाया बल्कि उन्हें हिंदी के प्रयोग के नए आयामों से भी परिचित कराया।
कार्यशाला की संरचना अंकित कुमार, कनिष्ठ अनुवादक द्वारा तैयार की गई थी, जिसमें उन्होंने कार्यक्रम की रूपरेखा और विषय-वस्तु का संतुलित निर्धारण किया। इस कार्य में उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि प्रत्येक सत्र का उद्देश्य स्पष्ट हो और प्रतिभागियों को व्यावहारिक रूप से लाभ मिले। उनके इस प्रयास ने कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इसके अतिरिक्त सहायक लेखा अधिकारी प्रतीक कौर और राहुल वर्मा ने भी अपने विचार साझा किए। उन्होंने हिंदी में आधिकारिक कार्य करने के अपने अनुभवों को प्रस्तुत किया और प्रतिभागियों को यह बताया कि कैसे निरंतर अभ्यास और सही मार्गदर्शन से हिंदी लेखन में दक्षता प्राप्त की जा सकती है। उनके संबोधन से यह स्पष्ट हुआ कि हिंदी के प्रयोग में केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि आत्मीयता और समर्पण की भी आवश्यकता होती है।
इस कार्यशाला में भाषा की महत्ता के साथ-साथ तकनीकी नवाचारों की भी चर्चा हुई। प्रतिभागियों को यह समझाया गया कि आज के डिजिटल युग में हिंदी का प्रयोग केवल लेखन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह तकनीकी उपकरणों और अनुप्रयोगों में भी समान रूप से प्रभावी हो सकता है। इस संदर्भ में कंप्यूटर पर हिंदी टंकण, सॉफ्टवेयर का उपयोग और ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर हिंदी की सुलभता पर विशेष ध्यान दिया गया।
कार्यक्रम के अंत में राकेश रंजन मिश्रा, सहायक निदेशक (राजभाषा) ने सभी प्रतिभागियों और अतिथि वक्ता का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की कार्यशालाएं कर्मचारियों में आत्मविश्वास और कौशल दोनों का विकास करती हैं। उनके धन्यवाद ज्ञापन ने कार्यक्रम को सौहार्दपूर्ण और प्रेरणादायी वातावरण में पूर्ण किया।
इस कार्यशाला के सफल संचालन में शिवकेश, मनीष कुमार और कविता शर्मा ने विशेष योगदान दिया। उनके सहयोग से कार्यक्रम की प्रत्येक गतिविधि सुव्यवस्थित रूप से संपन्न हुई। यह टीम भावना का एक उत्कृष्ट उदाहरण था, जिससे यह साबित हुआ कि किसी भी आयोजन की सफलता में सामूहिक प्रयास का कितना महत्व होता है।
अंततः यह हिंदी कार्यशाला केवल एक दिन का प्रशिक्षण सत्र न होकर, कार्यालयीन जीवन में हिंदी की उपयोगिता और तकनीक के साथ उसके सहज एकीकरण का प्रतीक बन गई। इसने प्रतिभागियों को यह विश्वास दिलाया कि हिंदी न केवल भावनाओं की भाषा है, बल्कि यह प्रशासन, तकनीक और आधिकारिक कार्यों के लिए भी उतनी ही सक्षम और उपयुक्त है।
More Stories
रोबोटिक उत्कृष्टता का जश्न
बजाज ने लॉन्च की दुनिया की पहली CNG बाइक: ईंधन के क्षेत्र में क्रांति!