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पंजाब वक़्फ़ बोर्ड की वर्तमान स्थिति: हकीकत क्या है?

वक़्फ़ बोर्ड संशोधन बिल 2024* इस वक़्त देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। कहा जा रहा है कि देशभर में वक़्फ़ बोर्ड के पास लगभग 8 लाख एकड़ से भी अधिक ज़मीन है। इस बिल के ज़रिए सरकार वक़्फ़ की ज़मीनों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाने की बात कर रही है, लेकिन मुस्लिम समाज का एक बड़ा वर्ग इस बिल का विरोध कर रहा है। उनका कहना है कि अगर यह बिल पास हो गया तो वक़्फ़ की संपत्तियों पर सरकार का सीधा हस्तक्षेप होगा और वक़्फ़ बोर्ड मुसलमानों की भलाई के लिए स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पाएगा।

लेकिन दूसरी सच्चाई यह है कि आज वक़्फ़ बोर्ड का कामकाज खुद सवालों के घेरे में है। पंजाब के पटियाला ज़िले की तहसील रजपुरा के गांव नंदगढ़ में वक़्फ़ बोर्ड की लगभग 28 बीघा ज़मीन है। यहां एक छोटी सी मस्जिद है, जहां मुश्किल से 10-15 लोग नमाज़ पढ़ पाते हैं, जबकि बाकी ज़मीन पर एक व्यक्ति ने बिना किसी वैध दस्तावेज़ के अवैध क़ब्ज़ा कर रखा है। वक़्फ़ बोर्ड ने सालों पहले किसी को ज़मीन लीज़ पर दी थी, लेकिन उसने नियमों के विरुद्ध उसे आगे किसी और को दे दिया और अब वह शख़्स खुलेआम क़ब्ज़ा जमाए बैठा है।

गांव के लोगों ने जब इस अवैध क़ब्ज़े का विरोध किया और वक़्फ़ बोर्ड से मस्जिद की सुविधा बेहतर करने की मांग की तो उन्हें केवल काग़ज़ी प्रक्रिया में उलझा दिया गया। वज़ू के लिए कोई जगह नहीं है, ना ही मस्जिद की कोई दीवार है, जिससे जानवर अंदर घुस आते हैं। जब लोगों ने वक़्फ़ बोर्ड से मस्जिद की चारदीवारी और वज़ू की जगह की अनुमति मांगी तो बोर्ड ने साफ़ कहा कि आप सिर्फ़ मस्जिद तक सीमित रहें, बाकी ज़मीन पर हम पुराने पट्टेदार को दोबारा लीज़ पर देने की प्रक्रिया में हैं।

इससे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या वक़्फ़ बोर्ड वास्तव में मुस्लिम समाज की भलाई के लिए काम कर रहा है? जिस ज़मीन पर मस्जिद है, वहां ना तो सुरक्षा है, ना सफ़ाई, और ना ही सुविधा। क्या वक़्फ़ बोर्ड इस ज़मीन के कुछ हिस्से में स्कूल, अस्पताल या लाइब्रेरी नहीं बना सकता जिससे मुस्लिम समाज के साथ-साथ अन्य समुदायों का भी भला हो सके? हक़ीक़त यह है कि वक़्फ़ बोर्ड की संपत्तियां कुछ अधिकारियों और रसूखदारों के लिए “रीवड़ी” बन चुकी हैं, जिन्हें वे अपनी मर्ज़ी से बांटते फिर रहे हैं।

आज 28 मई 2025 को जब लुधियाना की शाही मस्जिद के इमाम उस गांव की मस्जिद में पहुंचे, तो आसपास के लोगों को एक उम्मीद की किरण ज़रूर दिखी कि शायद अब उनकी आवाज़ कहीं तक पहुंचे। लेकिन सवाल यह है कि देश की वो बड़ी-बड़ी मुस्लिम तंजीमें, जो मुस्लिम तरक़्क़ी की बात करती हैं, क्या उन्हें वक़्फ़ बोर्ड की यह नाकामी, भ्रष्टाचार और ज़मीनों की लूट नहीं दिखती? अगर मुस्लिम समाज को वक़्फ़ बोर्ड को बचाना है तो सबसे पहले इसे जवाबदेह और पारदर्शी बनाना होगा। वरना यह संस्था, मुसलमानों की सेवा करने के बजाय, भ्रष्टाचार का गढ़ बनकर रह जाएगी।