“Firozpur Panchayat Scam EXPOSED! Govt Silent WHY?”

“Firozpur Panchayat Scam EXPOSED! Govt Silent WHY?”

फिरोजपुर एडीसी पर करोड़ों की हेराफेरी का आरोप, पदोन्नति पर उठे सवाल!!

फिरोजपुर पंचायत समिति से जुड़ा करोड़ों रुपये का गबन मामला अब और गंभीर होता जा रहा है। मोहाली प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सामाजिक कार्यकर्ता एवं सेवानिवृत्त पंचायत सचिव सुखपाल सिंह गिल ने खुलासा किया कि यह घोटाला अधिकारियों की लापरवाही और मिलीभगत का सीधा नतीजा है। उन्होंने बताया कि पंचायत समिति फिरोजपुर में करीब 1,80,87,591 रुपये का गबन किया गया, जो विभागीय अधिकारियों की आँखों के सामने ही हुआ।

गिल ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि यह गबन उस समय हुआ जब अतिरिक्त उपायुक्त (ग्रामीण विकास एवं पंचायत) अरुण शर्मा फिरोजपुर में तैनात थे। विभाग ने इस मामले की जाँच के लिए दो अधिकारियों की एक कमेटी बनाई थी, जिसने विस्तृत जांच रिपोर्ट पंजाब सरकार को भेज दी। इस रिपोर्ट में कई अहम खुलासे हुए, जिनसे यह साफ हो गया कि घोटाले की जड़ें कितनी गहरी हैं और इसमें कितने स्तर पर अधिकारियों की मिलीभगत रही है।

एनआईसी दिल्ली से प्राप्त तकनीकी रिपोर्ट ने इस पूरे मामले की सच्चाई को उजागर किया। रिपोर्ट के मुताबिक, जिन डोंगल और चेकर का इस्तेमाल किया गया, वे गलत नामों से बनाए गए थे और उन्हें अतिरिक्त उपायुक्त (आरडी) कार्यालय फिरोजपुर से अनुमोदन प्राप्त हुआ था। यह अनुमोदन 1 मई 2024 को दिया गया, जबकि उस दिन मजदूर दिवस की सरकारी छुट्टी थी और संबंधित अधिकारी पहले ही पदभार छोड़ चुके थे। इससे स्पष्ट हो गया कि अनुमोदन प्रक्रिया पूरी तरह फर्जी तरीके से की गई।

सुखपाल सिंह गिल ने यह भी बताया कि जांच के दौरान जिन कर्मचारियों से पूछताछ की गई, उन्होंने सच सामने लाने के बजाय स्थिति को और उलझाने का प्रयास किया। बयान देने वाले किसी भी कर्मचारी ने जिम्मेदारी स्वीकार नहीं की, बल्कि सभी ने एक-दूसरे पर आरोप मढ़ने की कोशिश की। इस रवैये से यह संदेह और गहरा हो गया कि घोटाले में विभागीय कर्मचारियों और अधिकारियों की गहरी साझेदारी थी।

गिल ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह भी स्पष्ट किया कि जिन डोंगल्स और फर्जी आईडी का इस्तेमाल हुआ, वे सीधे तौर पर अतिरिक्त उपायुक्त (आरडी) कार्यालय द्वारा पास किए गए थे। इसका मतलब है कि शीर्ष स्तर से ही इन गड़बड़ियों को हरी झंडी दी गई थी। उन्होंने कहा कि अरुण शर्मा ने अपने पद का दुरुपयोग किया और खुद को बचाने के लिए एफआईआर से अपना नाम बाहर रखवाया।

उन्होंने बताया कि पुलिस ने बीडीपीओ किरणदीप कौर, पंचायत समिति अध्यक्ष जसविंदर कौर और कई डाटा एंट्री ऑपरेटरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि अरुण शर्मा का नाम इस एफआईआर में शामिल नहीं किया गया। यह तथ्य और भी अधिक संदिग्ध है क्योंकि उन्हीं के हस्ताक्षर से छुट्टी के दिन फर्जी डोंगल पास किए गए थे।

जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा कि इस मामले की पूरी तरह निष्पक्ष जांच पुलिस विभाग को सौंपी जानी चाहिए। समिति ने यह भी कहा कि ई-पंचायत प्रणाली से जुड़े कर्मचारियों की भूमिका भी संदिग्ध है, क्योंकि उन्होंने गलत पहचान पत्र बनवाकर सिस्टम में इस्तेमाल किए और इन फर्जी पहचान पत्रों को भी अनुमोदन प्राप्त हुआ।

सुखपाल सिंह गिल ने मुख्यमंत्री पंजाब और पंचायत मंत्री से सख्त कार्रवाई की मांग की। उन्होंने कहा कि अरुण शर्मा को तुरंत उनके उच्च पद से निलंबित किया जाना चाहिए ताकि जांच निष्पक्ष रूप से आगे बढ़ सके। साथ ही, उनके खिलाफ सतर्कता विभाग या प्रवर्तन निदेशालय से कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए, जिससे पूरे घोटाले की सच्चाई सामने आ सके।

उन्होंने कहा कि यह मामला केवल वित्तीय गबन तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे पूरी डिजिटल प्रणाली की पारदर्शिता और सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया है। यदि उच्च अधिकारी ही फर्जी आईडी और अनुमोदन में शामिल पाए जाएं, तो आम जनता और ग्राम पंचायतों का भरोसा इस प्रणाली पर कैसे कायम रह सकता है।

गिल ने अंत में कहा कि यह घोटाला साबित करता है कि व्यवस्था में गंभीर खामियां हैं और जब तक दोषियों को कड़ी सजा नहीं मिलेगी, तब तक न तो भ्रष्टाचार रुकेगा और न ही जनता का विश्वास बहाल होगा। उन्होंने पत्रकारों से अपील की कि इस मामले को जनता तक पहुँचाया जाए ताकि दबाव बन सके और दोषी अधिकारी कानून के शिकंजे से बच न सकें।

क्या आप चाहेंगे कि मैं इसे और पत्रकारिता शैली में (समाचार लेख की तरह) दुबारा लिख दूँ?