मोहाली के खरड़ से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जहाँ एक 78 वर्षीय बुज़ुर्ग महिला, श्रीमती परमजीत कौर ग्रेवाल, जो करोड़ों की संपत्ति की मालकिन हैं, आज बेघर हो चुकी हैं। हैरानी की बात यह है कि उन्हें ये दिन उनके अपने इकलौते बेटे की वजह से देखना पड़ रहा है, जिसने उन्हें घर से बाहर निकाल दिया।
श्रीमती परमजीत कौर ने मोहाली प्रेस क्लब में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान अपने साथ हुई दर्दनाक घटना को मीडिया के सामने रखा। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर अपने बेटे को पढ़ाया-लिखाया, इंजीनियर बनाया और करोड़ों की संपत्ति बेचकर उसे खरड़ में एक निजी स्कूल खोलकर आत्मनिर्भर बनाया।
पति के निधन के बाद, परिवार की संपत्ति में माँ और बेटे का बराबर हिस्सा था। लेकिन बेटे सिमरनप्रीत सिंह ग्रेवाल ने बीते 10-12 वर्षों से माँ पर मानसिक दबाव बनाना शुरू कर दिया ताकि वह अपने हिस्से की संपत्ति भी उसके नाम कर दे। माँ के इनकार करने पर, स्कूल को अपग्रेड करने के बहाने उनसे ज़बरदस्ती दस्तखत करवा लिए गए।
परमजीत कौर का आरोप है कि बेटे ने मात्र पचास हजार रुपये वार्षिक किराए पर उनकी संपत्ति को 30 साल की लीज पर अपने नाम करवा लिया और फिर अपनी पत्नी के साथ मिलकर स्कूल पर पूरी तरह से मालिकाना हक जमा लिया। इसके बाद, उन्हें एक-एक पैसे के लिए मोहताज कर दिया गया।
उन्होंने बताया कि वह अपनी बेटी से मिलने के लिए विदेश गई थीं, और जब वह वापस लौटीं तो अपने ही घर के बाहर खड़े सुरक्षा गार्ड ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। बेटे के कहने पर घर के ताले भी बदल दिए गए। अब उनके पास रहने के लिए घर नहीं और गुज़ारे के लिए कोई साधन नहीं बचा।
परमजीत कौर ने कहा कि उन्हें स्कूल की आमदनी से एक भी रुपया नहीं मिला और आज वह अपनी बेटी के घर पर शरण लेने को मजबूर हैं। उन्होंने ग़मगीन होकर कहा कि आजकल बेटियाँ ही माँ-बाप का असली सहारा बन रही हैं, क्योंकि बेटों की ममता पर लालच हावी हो चुका है।
उन्होंने बताया कि वह और उनकी बेटी बीते चार महीनों से एस.डी.एम. खरड़, पंजाब महिला आयोग और डी.एस.पी. खरड़ को बार-बार लिखित अपीलें कर रही हैं, लेकिन कहीं से भी न्याय नहीं मिला। अब उन्होंने मीडिया के सामने आकर अपनी पीड़ा सबके सामने रखने का फैसला किया।
परमजीत कौर ने मुख्यमंत्री भगवंत मान, डी.जी.पी. पंजाब और मोहाली के डिप्टी कमिश्नर से अपील की है कि उन्हें उनकी संपत्ति वापस दिलाई जाए और इस अन्याय के खिलाफ कार्रवाई की जाए। उन्होंने कहा कि एक माँ को उसके अपने ही बेटे ने बेसहारा कर दिया, इससे बड़ा धोखा और क्या हो सकता है?
यह मामला सिर्फ संपत्ति का नहीं, बल्कि रिश्तों के गिरते स्तर और समाज में बढ़ते स्वार्थ का आईना है। एक माँ जो अपने बेटे के लिए सब कुछ छोड़ सकती है, उसे जब उसी बेटे द्वारा ठुकराया जाए, तो यह सिर्फ एक व्यक्ति का दर्द नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए चेतावनी है।
श्रीमती परमजीत कौर की कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या आज के दौर में ममता, त्याग और परवरिश की कोई कीमत नहीं रह गई? क्या बेटा बनकर कोई इंसान माँ को इस हद तक दर्द दे सकता है कि उसे अपने ही घर के बाहर भी पराया महसूस हो?
अब देखना यह है कि क्या सरकार और प्रशासन इस माँ की पुकार सुनेगा या फिर यह मामला भी बाकी कई मामलों की तरह फाइलों में ही दबा रह जाएगा। लेकिन एक बात तय है—इस माँ का आंसू अब पूरे समाज से जवाब मांग रहा है
More Stories
विमान सुरक्षा और व्यापार पारदर्शिता पर राज्यसभा में डॉ. मित्तल की गंभीर चिंता
वक्फ संशोधन विधेयक 2024 के खिलाफ मुस्लिम समुदाय का विरोध!