पंजाब सरकार द्वारा प्रस्तावित वृक्ष संरक्षण अधिनियम 2025 को लेकर पर्यावरणविदों में भारी असंतोष देखा जा रहा है। उनका कहना है कि यह कानून मौजूदा पर्यावरणीय संकट को हल करने के बजाय और जटिल बना सकता है।
चंडीगढ़ प्रेस क्लब में आयोजित एक प्रेस वार्ता में वटरुख फाउंडेशन और अन्य संगठनों ने खुलकर इस अधिनियम की कमियों को सामने रखा। उनका कहना था कि यह कानून केवल शहरी क्षेत्रों तक सीमित है, जबकि पंजाब का 90% भूभाग ग्रामीण है।
इस अधिनियम में विरासती या हेरिटेज वृक्षों का कोई उल्लेख नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि जो पेड़ सांस्कृतिक, ऐतिहासिक या जैविक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, उन्हें संरक्षित करना बेहद ज़रूरी है।
वर्षों से घटते जा रहे हरित क्षेत्र और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से पंजाब में वायु प्रदूषण, जल स्तर में गिरावट, और जैव विविधता का ह्रास हो रहा है। यह अधिनियम इन गंभीर समस्याओं को ध्यान में नहीं रखता।
एनजीटी द्वारा स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि अधिनियम में शिकायत निवारण प्रणाली, निजी ज़मीन पर पेड़ों की रक्षा और वृक्षों की जनगणना जैसे मुद्दों को शामिल किया जाए, परंतु मसौदा इन निर्देशों पर खरा नहीं उतरता।
कार्यकर्ताओं का यह भी कहना है कि पेड़ काटने पर दो पेड़ लगाने का नियम नाकाफी है। पहले की नीति में पाँच पेड़ लगाने की बात थी, जबकि विशेषज्ञों की राय में यह संख्या कम से कम पंद्रह होनी चाहिए।
कानून में कारावास जैसी सख्त सजा का प्रावधान न होना भी चिंता का विषय है। बिना दंड के कोई भी कानून प्रभावी नहीं बन सकता, विशेषकर जब बात पर्यावरण सुरक्षा की हो।
कर्नल जसजीत सिंह गिल और इंजीनियर कपिल अरोड़ा जैसे पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने समयबद्ध वृक्ष जनगणना और जियो टैगिंग की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। इससे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सकेगी।
तेजस्वी मिन्हास, जिन्होंने एनजीटी में याचिका दायर की थी, ने कहा कि पंजाब उन गिने-चुने राज्यों में से है जहाँ आज तक पेड़ों की सुरक्षा को लेकर कोई मज़बूत प्रणाली नहीं बनी है।
सभी पर्यावरण प्रेमियों ने एक सुर में सरकार से अपील की कि अधिनियम को दोबारा मसौदा बनाकर, सिविल सोसाइटी और विशेषज्ञों से विचार-विमर्श कर एक सशक्त और व्यावहारिक कानून बनाया जाए, ताकि पंजाब की हरियाली बचाई जा सके।
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